बाराबंकी में अन्य स्थान
रुचि के अन्य स्थान
सिद्धौर
यह शुरू में सिधपुरा के नाम से जाना जाता था, और समय बीतने के साथ, यह सिद्धौर हो गया। यह बाराबंकी जिला मुख्यालय से लगभग 50 किलोमीटर दूर है। यह प्रसिद्ध है –
1. सिद्धेश्वर महादेव मंदिर: सिद्धौर सिद्धेश्वर महादेव मंदिर से सुशोभित है, और यहां हर साल दिसंबर और जनवरी के महीनों में शिवरात्रि के अवसर पर एक बड़ा मेला आयोजित किया जाता है।
2. सूफी संत काजी कुतुब का मकबरा: यहां सूफी संत काजी कुतुब का मकबरा है और लोग इस सूफी संत को अपना सम्मान अर्पित करने आते हैं। यहां प्रत्येक ईद-उल-फितर और ईद-उज़-ज़ुहा के अवसर पर एक बड़ा मेला आयोजित किया जाता है।
बदोसराय
रामनगर तहसील मुख्यालय के पूर्वोत्तर में बदोसराय लगभग 9 किमी पर स्थित है, जिसकी एक आध्यात्मिक राजा द्वारा लगभग 550 वर्ष पूर्व स्थापना की गई थी। इस स्थान के लगभग 6 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में कोटवा है, यहां ‘सतनामी’ संप्रदाय के संस्थापक बाबा जगजीवन दास का मंदिर है, इसे कोटवा धाम के नाम से जाना जाता है। मंदिर के पास में एक बहुत ही सुंदर तालाब है।अक्टूबर और अप्रैल के महीनों में आयोजित मेले के दौरान हजारों तीर्थयात्री इस तालाब में पवित्र डुबकी लगाते हैं।
सूफी संत मालमात शाह का मजार बदोसराय और घाघरा नदी के बीच स्थित है, जिनका लगभग 300 साल पहले स्वर्गवास हुआ था। इस सूफी संत को अपना सम्मान व्यक्त करने के लिए लोग इस स्थान पर आते हैं।
किन्तूर
प्राचीन कथनों के अनुसार, बदोसराय से लगभग दो से तीन मील पूर्व में स्थित किन्तूर गांव है, जिसका नाम पांडव की मां कुन्ती पर पड़ा है। शुरू में इसका नाम कुन्तापुर था। यह कुन्तेश्वर मंदिर के लिए प्रसिद्ध है, जहां बड़ी संख्या में तीर्थयात्री आते हैं।
सतरिख
ऐसा कहा जाता है कि इसका मूल नाम सप्तऋषि था, क्योंकि गुरु वशिष्ठ, सूर्यवंशी राजाओं के कुलगुरु ने यहां युवा राजकुमारों को उपदेश दिये और अध्यापन कराया । यह संतों और साधुओं की बड़ी संख्या की तपस्या स्थली रही है। इस स्थान के बारे में मुस्लिम राज से पहले का प्रमाणिक विवरण देने वाला कोई भी प्रमाणित साक्ष्य उपलब्ध नहीं हैं। यह सय्यद सालार मसूद का मुख्यालय था, जो महमूद ग़जनी के भाई थे। उनके पिता सलाार शाह का मकबरा यहां है, और लोग अपना सम्मान व्यक्त करने के लिए इस स्मारक का दौरा करते हैं। ‘ज्येष्ठ’ माह की पूर्णिमा जो कि ग्रीष्मकाल है, के दौरान लोगों का मुख्य एकत्रण आयोजित किया जाता है। शेख सैलाहउद्दीन भी सालार शाह के साथ आए थे और सतरिख में बस गए थे।
भिटौली
1857-1858 में भारतीय स्वतंत्रता के पहले युद्ध के स्वतंत्रता सेनानियों का आखिरी मोर्चा भिटौली था, जो ‘सोती’ धारा के किनारे पर है। यहां पर राजा गुरू बक्श सिंह और उनके लोगों ने अंग्रेजों से बहादुरी के साथ संघर्ष किया। इस जगह पर एक किला और स्वतंत्रता संग्राम के पर्याप्त अवशेष हैं, और इसलिए इस स्थान को संरक्षित ऐतिहासिक विरासत सूची में घोषित किया गया है।
मसौली
यह स्वर्गीय श्री रफी अहमद किदवई, महान स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिज्ञ और भारत के राजनेता का जन्मस्थान है। उन्हें स्वर्गवास के पश्चात मसौली में दफनाया गया था, और वहां उनकी स्मृति में एक मकबरा बनाया गया था। मसौली शानदार किदवइयों का मूलगृह है।
फोटो गैलरी
कैसे पहुंचें:
बाय एयर
लखनऊ का चौधरी चरण सिंह अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डा बाराबंकी से लगभग 45 किलोमीटर दूर है।
ट्रेन द्वारा
बाराबंकी पूर्वोत्तर रेलवे डिवीजन के तहत आता है, बाराबंकी रेलवे स्टेशन लखनऊ स्टेशन से 28 किलोमीटर दूर है।
सड़क के द्वारा
बाराबंकी नगर बस अड्डे से उत्तर प्रदेश परिवहन निगम की बसें उपलब्ध हैं। इनके अतिरिक्त 3-व्हीलर, जीप आदि जैसे स्थानीय परिवहन भी प्रातः 6.00 बजे से 7.00 बजे शाम तक उपलब्ध होते हैं।